🙏... ठन गई
मौत से ठन गई
जूझने का मेरा कोई इरादा न था
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था
रास्ता रोककर वह खड़ी हो गई
यों लगा ज़िंदगी से बड़ी हो गई।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये
आधियों में जलायें हैं बुझते दिए,
आज झकझोरता तेज तूफान है
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है,
पार पाने का कायम मगर हौसला
देख तूफां का तेवर तरी तन गई
मौत से ठन गई
- अटल बिहारी बाजपेयी
आज से नहीं वरन जब से मानव का प्रादुर्भाव इस धरती पर हुआ है तब से समय-दर-समय इंसानों को संकटों का सामना करना पड़ा है। एकल खतरे से तो इंसान अक्सर जूझता ही रहता है परन्तु कालरूपी चादर के अंदर सामूहिक खतरे भी छुपे होते हैं, जिससे इंसान को हाथ चार-चार करना पड़ता है और आज यही खतरा सम्पूर्ण वैश्विक जगत पर चुनौती बनकर खड़ा हो गया है लेकिन ऐसे खतरे से उबड़ने की असीम शक्ति है मानवों के पास, फिर भी इंसानों को संघर्ष करना होता है ताकि उसका सच से सामना हो सके।
ये सच वह परिघटना है जबकि प्रकृति इंसान को उसके अस्तित्व व उसकी भूमिका का एहसास दिलाता है। इंसान के अंदर इंसानियत जैसी खूबी के सीमटने के साथ ही प्रकृति के नियम के साथ भी खिलवाड़ शुरू हो जाता है जिसका खामियाजा सम्पूर्ण मानव समाज़ को भुगतना पड़ता है।
ये बात सच है कि विज्ञान ही सर्वोपरि होना चाहिए और इसके बढावे से ही मानव समाज संरक्षित रह सकता है। आजकल कुछ लोग के द्वारा धर्म को गाली दिया जा रहा है जो पूर्णतः सही साबित नहीं हो सकता क्योंकि गाली देने वाले धर्म के किस स्वरूप को मानते हैं इस बात पर निर्भर करता है। कल्पना कीजिये अगर इंसानियत पूर्णतः मिट जाए तो क्या विज्ञान विनाशक नहीं हो सकता है? क्योंकि हम जानते हैं कि विज्ञान ने ही परमाणु बम, हैड्रोजन बम, जैविक हथियार (जैसा कि अभी चीन पर शक हो रहा है) को भी जन्म दिया है।
खात्मा केवल वायरसही नहीं बल्कि विज्ञान भी कर सकता है तब जबकि इंसानियत व दयाभाव मनुष्यों की विचारधारा से मिट जायेगा। धर्मांध व आडंबरपूर्ण जैसे मामले को मैं कभी स्वीकृत नहीं कर सकता और इसे मैं सिरे से खारिज करता हूँ। रही बात धर्म की तो लोग धार्मिक होकर भी आध्यात्मिक हो सकता है या गैरधार्मिक होकर भी.. ये विशेष बहस का मुद्दा है। हम धर्म को गलत इसीलिए नहीं कह सकते हैं क्योंकि यह अक्सर आध्यात्मिकता का जनक भी होता है। यहाँ आध्यात्म को समझना दिलचस्प होगा जबकि ये धर्म के साथ संलिप्त भी होता है या फिर पृथक भी और यही तो इंसानियत की पराकाष्ठा है, जहाँ दुनिया के किसी के प्राणी के साथ भेदभाव को जन्म नहीं देता है 😊
आज हमारी मानव सभ्यता को केवल एक बीमारी नहीं मिली है बल्कि यह सीख भी मिला कि हम किस ओर जा रहे है और हमें करना क्या चाहिए? जहाँ तक बात रही हमारे देश के अंदर मूलभूत अवसंरचना की तो बेशक इस दिशा में हमसभी को मिलकर प्रयास करना ही समाज को जीवंत रखने का एकमात्र विकल्प है।
आज हमे घबराने की जरूरत से ज्यादे सम्पूर्ण सतर्कता की आवश्यकता है और मानव समाज की रक्षा हेतु कायदे के साथ अपना सम्पूर्ण योगदान देना है। आज दुनिया का अलग-अलग देशों में व WHO के द्वारा इस समस्या के खात्मे के लिए दिन-रात प्रयास किये जा रहे हैं इसीलिए बहुत ज्यादे चिंतित होने की जरूरत नहीं है क्योंकि बहुत जल्द मानव की ताकत विज्ञान की जीत होने वाली है। फिल्हाल हमें मिथकों से तटस्थ रहते हुए सभी नियमों का पालन करते हुए यथासंभव जरूरतमंदों को मदद करते रहना है और यही हमारा मौलिक धर्म भी है। सामान्य स्थिति होने के बाद भी संघर्ष को कायम रखना है ताकि भविष्य संरक्षित रह सके।
मैं दुनिया के सभी वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, पुलिसकर्मियों, सेना और इस संकट के इन्मूलन के दिशा मे प्रयासरत सभी व्यक्तियों को कोटि-कोटि नमन 🙏💞करता हूँ।
धन्यवाद 🙏
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कन्टेंट राइटर- दीपक सोनी/मधेपुरा